HAU scientists discovered new disease of pea crop
अंतरराष्ट्रीय संस्था अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी ने दी बीमारी को मान्यता, एचएयू के वैज्ञानिक डॉ. जगमोहन हैं पहले शोधकर्ता
हरियाणा न्यूज टूडे / सुनील कोहाड़।
एच ए यू हिसार की ताजा खबर: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय है (HAU scientists discovered new disease of pea crop ) के वैज्ञानिकों ने मटर की नई बीमारी व इसके कारक जीवाणु कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एस.आर. 1) की खोज की है। पौधों में नई बीमारी को मान्यता देने वाली अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी (ए.पी.एस), यू.एस.ए. द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठित जर्नल प्लांट डिजीज में वैज्ञानिकों की इस नई बीमारी की रिपोर्ट को प्रथम शोध रिपोर्ट के रूप में जर्नल में स्वीकार कर मान्यता दी है। अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी (ए.पी.एस) पौधों की बीमारियों के अध्ययन के लिए सबसे पुराने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों में से एक है जो विशेषत: पौधों की बिमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन करती है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दुनिया में इस बीमारी की खोज करने वाले सबसे पहले वैज्ञानिक हैं। इन वैज्ञानिकों ने फाइटोप्लाज्मा मटर में बीमारी पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में प्रकाशन किया है।
बीमारी के बाद इसके प्रसार की निगरानी व उचित प्रबंधन का हो लक्ष्य : प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बी.आर. काम्बोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई दी। प्रो. काम्बोज ने कहा कि बदलते कृषि परिदृश्य में विभिन्न फसलों में उभरते खतरों की समय पर पहचान महत्वपूर्ण हो गई है। उन्होंने वैज्ञानिकों से बीमारी के आगे प्रसार पर कड़ी निगरानी रखने को कहा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को रोग नियंत्रण पर जल्द से जल्द काम शुरू करना चाहिए। इस अवसर पर ओएसडी डॉ. अतुल ढींगड़ा, सब्जी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एस.के. तेहलान, पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार, मीडिया एडवाइजर डॉ. संदीप आर्य व एसवीसी कपिल अरोड़ा भी मौजूद रहे।
वर्ष 2023 में मटर की फसल में दिखाई दिए थे लक्षण
अनुसंधान निदेशक डॉ. जीतराम शर्मा ने बताया कि पहली बार फरवरी-2023 में सेन्ट्रल स्टेट फार्म, हिसार में मटर की फसल में नई तरह की बीमारी दिखाई दी, जिसमें मटर के 10 प्रतिशत पौधे बौने और झाड़ीदार हो गए थे। एचएयू के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद इस बीमारी के कारक कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एस.आर. 1) की खोज की है। उन्होंने कहा कि बीमारी की जल्द पहचान से योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलेगी।
इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान
इस बीमारी के मुख्य शोधकर्ता और विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजिस्ट डॉ जगमोहन सिंह ढिल्लों ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी, यूएसए द्वारा मार्च, 2024 के दौरान इस शोध रिपोर्ट को प्रकाशन किया है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस बीमारी के सबसे पहले शोधकर्ता माने गए हैं। डॉ. ढिल्लों ने कहा कि कई रूपात्मक, आणविक और रोगजनकता परीक्षणों के आधार पर हम यह साबित करने में कामयाब रहे कि एक जीवाणु कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एस.आर. 1) इस बीमारी का कारक है। इस रोग से ग्रसित मटर के पौधे बौने और झाड़ीदार हो जाते है। एचएयू के वैज्ञानिकों डॉ. राकेश कुमार चुघ, डॉ. धर्मवीर दूहन और आईएआरआई, नई दिल्ली से डॉ. हेमावती व डॉ. कीर्ति रावत ने भी इस शोधकार्य में योगदान दिया।
बीमारी के बाद इसके प्रसार की निगरानी व उचित प्रबंधन का हो लक्ष्य : प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बी.आर. काम्बोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई दी। प्रो. काम्बोज ने कहा कि बदलते कृषि परिदृश्य में विभिन्न फसलों में उभरते खतरों की समय पर पहचान महत्वपूर्ण हो गई है। उन्होंने वैज्ञानिकों से बीमारी के आगे प्रसार पर कड़ी निगरानी रखने को कहा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को रोग नियंत्रण पर जल्द से जल्द काम शुरू करना चाहिए। इस अवसर पर ओएसडी डॉ. अतुल ढींगड़ा, सब्जी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एस.के. तेहलान, पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार, मीडिया एडवाइजर डॉ. संदीप आर्य व एसवीसी कपिल अरोड़ा भी मौजूद रहे।
वर्ष 2023 में मटर की फसल में दिखाई दिए थे लक्षण
अनुसंधान निदेशक डॉ. जीतराम शर्मा ने बताया कि पहली बार फरवरी-2023 में सेन्ट्रल स्टेट फार्म, हिसार में मटर की फसल में नई तरह की बीमारी दिखाई दी, जिसमें मटर के 10 प्रतिशत पौधे बौने और झाड़ीदार हो गए थे। एचएयू के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद इस बीमारी के कारक कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एस.आर. 1) की खोज की है। उन्होंने कहा कि बीमारी की जल्द पहचान से योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलेगी।
इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान
इस बीमारी के मुख्य शोधकर्ता और विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजिस्ट डॉ जगमोहन सिंह ढिल्लों ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी, यूएसए द्वारा मार्च, 2024 के दौरान इस शोध रिपोर्ट को प्रकाशन किया है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस बीमारी के सबसे पहले शोधकर्ता माने गए हैं। डॉ. ढिल्लों ने कहा कि कई रूपात्मक, आणविक और रोगजनकता परीक्षणों के आधार पर हम यह साबित करने में कामयाब रहे कि एक जीवाणु कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एस.आर. 1) इस बीमारी का कारक है। इस रोग से ग्रसित मटर के पौधे बौने और झाड़ीदार हो जाते है। एचएयू के वैज्ञानिकों डॉ. राकेश कुमार चुघ, डॉ. धर्मवीर दूहन और आईएआरआई, नई दिल्ली से डॉ. हेमावती व डॉ. कीर्ति रावत ने भी इस शोधकार्य में योगदान दिया।
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