Site icon Abtak Haryana News – हरियाणा की ताजा खबरें – Latest News HR

Stories of kargil : कुछ किस्से कारगिल के……

 

Stories of kargil , Ajit Singh

कारगिल युद्ध की रिपोर्टिंग के लिए जब मैं कारगिल पहुंचा तो एक हद तक यह एक सुनसान शहर था । मैं श्रीनगर से सेना द्वारा आयोजित मीडिया पार्टी का हिस्सा था । प्रमुख मीडिया नेटवर्क के संवाददाताओं वाली पार्टी ने युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए सेना की अनुमति प्राप्त करने के लिए श्रीनगर में तीन सप्ताह से अधिक समय तक इंतजार किया था।

 


मैं फिल्म डिवीजन की टीम के साथ डीएवीपी की वैन में सफर कर रहा था । हमने युद्ध क्षेत्र में कुछ कहीं फंस जाने की संभावना से निपटने के लिए ब्रेड, मक्खन, बिस्कुट और चावल का पर्याप्त कोटा साथ लिया था।‌ मेरे पास मेरे टेपरेकॉर्डर के इलावा एक सैटेलाइट फोन भी था।‌ ( Stories of kargil )

 


12000 फीट ऊंचे ज़ोजिला दर्रे को पार करते हुए, हमारा पहला हाल्ट एक बोफोर्स तोप बैटरी थी जो ऊंची पहाड़ी के पार पाकिस्तान सेना पर भारी गोलाबारी कर रही थी ताकि हमारे सैनिक आगे बढ़ सकें। यह दृश्य मीडिया के लिए काफी लुभावना था । हम बोफोर्स तोप की मारक क्षमता से बड़े प्रभावित हुए।

 

 


उन दिनों भी इस तोप की खरीदी में भ्रष्टाचार का मुद्दा चल रहा था। पिछले शासन के दौरान स्वीडन से इसकी खरीद की गई थी। कुछ आगे चल कर एक स्थान पर सेना के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उस क्षेत्र और भारतीय सेना की स्थिति के बारे में एक ब्रीफिंग दी गई । दरास कस्बे के नजदीक टोलोलिंग रिज को पाकिस्तानी घुसपैठियों से खाली करा लिया गया था। ( Stories of kargil )

 


दोपहर के भोजन के समय हमने कुछ जवान फौजी अफसरों से भी बात की। वे बड़े उत्साहित लग रहे थे। उस समय मुख्य लड़ाई टाइगर हिल पर चल रही थी। टाइगर हिल दरास कस्बे के पश्चिम में एक सीधी ऊंची चोटी है। गाइडेड मिसाइलों के साथ बमबारी की फ्लैश लाइट दिखाई दे रही थी। वहां से हमने कारगिल शहर की ओर रुख किया जो पूर्व दिशा में पड़ता है।


संकरी सड़क एक नदी के किनारे चलती है और इसका कुछ हिस्सा काकसर रेंज की ऊंची पहाड़ियों पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों की फायरिंग रेंज में है। बीएसएफ के एक जवान ने कुछ जरूरी सावधानियों के लिए चेकपोस्ट पर हमारे वाहनों को रोका। “आप दुश्मन की फायरिंग रेंज में हैं । अपने वाहनों के बीच लगभग 100 मीटर की दूरी रखें । अंधेरे के दौरान भी कोई लाइट न जगाएं। तेजी से ड्राइव करें और अगर आप पर फायरिंग भी हो जाए तो भी रुकें नहीं”।  ( Stories of kargil )


आखिरी निर्देश काफी डरावना था । हमने कुछ वाहनों के मलबे को नदी में नीचे देखा तो हमाराडर और भी बढ़ गया। देर शाम तक हम कारगिल के एक होटल में पहुंच गए । शहर को नियंत्रण रेखा के पार से रोजाना तोपखाने की गोलाबारी का सामना करना पड़ रहा था।‌ डर और भी बढ़ गया। देर शाम तक हम कारगिल के एक होटल में पहुंच गए । शहर को नियंत्रण रेखा के पार से रोजाना तोपखाने की गोलाबारी का सामना करना पड़ रहा था।‌


होटल एक तीन मंजिला बिल्डिंग थी लेकिन सभी मीडियाकर्मी पहली मंजिल के कमरे चाहते थे । अब तक उन्हें पता चल चुका था कि टॉप फ्लोर पर तोप का गोला सीधी मार कर सकता है और अगर गोला होटल के कंपाउंड में फट जाता है, तो उसके छर्रे ग्राउंड फ्लोर के कमरों में जा सकते हैं। ( Stories of kargil )

 


डीसी कारगिल भी पास के एक होटल से कार्य कर रहे थे क्योंकि उनका कार्यालय फायरिंग रेंज में था।‌ कारगिल शहर के अधिकांश लोगों को जांस्कर मार्ग पर कुछ दूरी पर सुरक्षित स्थान पर तंबुओं में शिफ्ट किया गया था । अगले दिन हम वहां गए। लोग बड़ी मुसीबत में थे। उन्होंने अपने जानवरों को खुला छोड़ दिया था क्योंकि घर में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था।

 


उससे अगले दिन हमें उस सड़क पर ले जाया गया, जो सिंधु नदी के किनारे पांच गांवों में बसे आर्य लोगों की ओर जाती है । आर्यों में बहुसंख्यक लद्दाखी लोगों से काफी अलग विशेषताएं हैं । वे अपने सिर पर पगड़ी में फूलों को सजा कर रखते हैं, सिवाय उस समय के जब उनके परिवार में कुछ शोक होता है।‌


वे आमतौर पर सेना के लिए मजदूर के रूप में काम करते हैं
यह एक आर्य चरवाहा ही था जिसने सबसे पहले सशस्त्र घुसपैठियों को देखा और सेना को सूचित किया । सेना ने पता लगाने के लिए अपनी एक खोजी टीम भेजी थी। पाकिस्तानी सैनिकों ने घात लगाकर उन्हे पकड़ लिया और बाद में सभी को बेरहमी से मार दिया गया। उनके क्षत-विक्षत शव भारतीय सेना को सौंप दिए गए । यह अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का स्पष्ट उल्लंघन था। हमने आर्य लोगों से बात की जिन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों की जानकारी दी थी। अगली शाम जब मैं सैटेलाइट फोन के जरिए अपनी खबर आकाशवाणी दिल्ली भेज रहा था तो होटल का मालिक मेरे कमरे में आया। ( Stories of kargil )

 


उन्होंने कहा कि लगभग एक साल पहले तक आकाशवाणी के समाचार बुलेटिनों में वह मेरा नाम सुनता रहा है। दिल्ली स्थानांतरित होने से पहले मैंने छह साल तक श्रीनगर में आकाशवाणी के वरिष्ठ संवाददाता के रूप में कार्य किया था।
बातचीत में मैंने उसे एक दिलचस्प व्यक्ति पाया।

 


“सर, यह भारतीय सेना को घुसपैठ की पाकिस्तानी योजनाओं के बारे में जानकारी तो पिछले साल अक्टूबर से थी पर इन्होंने ज़रूरी कदम नहीं उठाए। उनके पास पाकिस्तान में अपने जासूसी एजेंटों से पूरी जानकारी थी” ।
मैंने उसे यह कहते हुए टोका कि वह इतना सुनिश्चित कैसे हो सकता है।

 

 


“सर, घुसपैठ के क्षेत्रों के सभी ब्यौरे का एक पत्र 1998 के अक्टूबर में प्राप्त हुआ था । यह उर्दू में था और मुझे इसे पढ़ने के लिए सेना के अधिकारी ने बुलाया था क्योंकि वे उर्दू नहीं पढ़ सकते थे”, उसने कुछ विस्तार से बताया । अब बात कुछ समझ में आ रही थी।

 

 


फिर बात करते हुए वह सुबकने लगा । मैंने उसे सांत्वना देने की कोशिश की तो कहने लगा, “सर, पाकिस्तान हमारे लिए, कारगिल के लोगों के लिए कोई विकल्प नहीं है । हम शिया हैं और हम जानते हैं कि पाकिस्तान में शिया समाज पर क्या ज़ुल्म हो रहे हैं। हमें भारत में ही रहना है । हमारे लिए कोई दूसरा घर नहीं है । लेकिन भारतीय सेना हमारी रक्षा नहीं कर पाएगी”।

 


आप ऐसा क्यों महसूस करते हैं? मैंने पूछा।
“शाम को जब मैं सेना के लिए उर्दू की चिट्ठी पढ़ने गया था तो मैंने वहां चौंकाने वाला नज़ारा देखा। सेना के अधिकारी एक-दूसरे की पत्नियों के साथ नाच रहे थे । पत्नियों की कमर पकड़े हुए वे नाच रहे थे और गा रहे थे एक ट्रेन बना कर स्कूली बच्चों की तरह खेल कर रहे थे। वे शराब पी रहे थे । उन्होंने मुझे ठंड के मौसम में मेस के बाहर एक घंटे से अधिक समय तक बैठा कर रखा। क्या आपको लगता है कि ऐसे लोग हमें बचा सकते हैं? जिस अधिकारी ने मुझे फोन कर बुलाया था वह भी नशे में था । हो सकता है कि उसने मेरी बात ठीक से सुनी ही न हो”। ( Stories of kargil )

 

 


वह थोड़ा उत्तेजित और कुछ हताश लग रहा था ।
मैंने सेना के एक अधिकारी को विश्वास में लेकर यह मामला बताया । उसने कहा, ” जासूसों के पत्र हर साल आते हैं। इन पर विधिवत ध्यान दिया जाता है लेकिन बात अक्सर बढ़ा चढ़ा कर लिखी गई या पूरी तरह से आधारहीन पाई जाती है । कुछ जासूस डबल एजेंट हैं । कभी कभी ये पत्र पाकिस्तान की एजेंसियों द्वारा भी लिखवा कर भिजवाए जाते हैं, हमें गुमराह करने के लिए। सर्दियों के दौरान ऊंची चोटियों पर सैनिक तैनात करना बेहद मुश्किल है। मैंने यह खबर नहीं भेजी। कच्ची खबर थी।

 


चौथे दिन, प्रेस पार्टी वापस श्रीनगर के लिए चल पड़ी। उसी दिन नई दिल्ली में सेना के प्रवक्ता कर्नल बिक्रम सिंह ने घोषणा की कि टाइगर हिल को मुक्त करा लिया गया है । कर्नल बिक्रम सिंह बाद में थल सेना अध्यक्ष भी बने। बीच में उनका एक ब्रिगेडियर के रूप में अनंतनाग में कार्यकाल रहा था।

 


टाइगर हिल को फिर से जीतने की गाथा आने वाले हफ्तों और महीनों में सामने आने वाली थी । सिपाही संजय कुमार को 2020 के गणतंत्र दिवस पर परम वीर चक्र के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार से नवाजा जाना था । कारगिल युद्ध बहादुर भारतीय सैनिकों ने एक कुटिल दुश्मन की बुरी नीयत और उसके षडयंत्र को नाकाम करके जीता था। इसे इतिहास में याद किया जाता रहेगा। मेरी भी कुछ यादें इससे जुड़ी रहेंगी क्योंकि मैंने इसे अपनी आंखों से देखा था।

 

अजीत सिंह हरियाणा के हिसार में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं । वह 19 वर्षों तक जम्मू-कश्मीर में ऑल इंडिया रेडियो के संवाददाता थे । वे दूरदर्शन हिसार के समाचार निदेशक के पद से 2006 में सेवानिवृत्त हुए। ( Stories of kargil )

Exit mobile version