MLA jassi petwar narnaund controversy help
Narnaund News : हरियाणा की नारनौंद विधानसभा इस समय सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में जबरदस्त चर्चा का केंद्र बनी हुई है। इसको लेकर नारनौंद विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक जस्सी पेटवाड़ ( MLA Jassi Petwar ) की इन दिनों खुब खिली उड़ रही है। लोगों उनमें किसी आम आदमी से भी छोटी मानसिकता देख रहे हैं और तरह तरह के कमेंट कर पोस्ट वायरल कर रहे हैं। मामला हाल ही के दिनों में गांव खेड़ी जालब व पाली गांव में पशुपालकों के पशुओं से जुड़ा हुआ है। विपक्षी नेता भी उन पर निशाना साध रहे हैं।
वजह है कांग्रेस विधायक जस्सी पेटवाड़ ( MLA Jassi Petwar ) द्वारा हाल ही में दो अलग-अलग गांवों में पशुपालकों की लाखों रुपये की भैंसों की मौत पर “सिर्फ 21-21 हजार रुपये” की आर्थिक सहायता देना। आरोप है कि नुकसान लाखों में था, लेकिन सहायता एक ही रकम — 21,000 रुपये — पर सीमित रही।
इस घटना ने हल्के की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। एक तरफ कांग्रेस समर्थक इसे “मानवीय पहल” बता रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आम लोग और विपक्ष इसे “दिखावटी मदद” करार दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर तो इसमें मीम्स, वीडियो और आलोचनाओं की बाढ़ सी आ गई है, जिसने विधायक को विवादों के केंद्र में ला दिया है।
विधायक जस्सी पेटवाड़ घटना होने पर खुद मौके पर पूरे तामझाम के साथ पहुंच जाते हैं और कैमरामैनों से शूट करवा कर सोशल मीडिया पर इस कदर पोस्ट करते हैं कि मानव उनसे बड़ा मसीहा हल्के की जनता के लिए कोई नहीं है जबकि स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है और वह सोशल मीडिया के ही विधायक बनकर रह गए हैं।
खेड़ी जालब में पशुपालक की लाखों की भैंसें मौत के बाद विवाद भड़का
विवाद की शुरुआत नारनौंद हल्के के गांव खेड़ी जालब से हुई। यहां एक पशुपालक की कई भैंसों की अचानक मौत हो गई, जिससे उसका भारी आर्थिक नुकसान हो गया। बताया जाता है कि भैंसें महंगी नस्ल की थीं और उनकी कीमत लाखों रुपये के आसपास थी।
घटना की जानकारी मिलते ही कांग्रेस विधायक जस्सी पेटवाड़ मौके पर पहुंचे, पीड़ित परिवार से मुलाकात की और संवेदना व्यक्त की। इसके बाद उन्होंने पशुपालक को 21 हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी।
लेकिन हैरानी की बात यह रही कि गांव और आस-पास के लोगों ने पीड़ित की मदद के लिए विधायक से ज्यादा नकद राशि इकट्ठी कर दी। कई लोगों ने मिलकर उसे लाखों रुपये की मदद देने का दावा किया।
यही तुलना विवाद की वजह बनी
- विधायक की सहायता: 21,000 रुपये
- गांव वालों की मदद: लाखों रुपये (कई गुना अधिक)
इसके बाद सोशल मीडिया पर सवाल उठाने लगे हैं कि जब एक जनप्रतिनिधि के पास बड़ी राशि, फंड और राजनीतिक क्षमता होती है, तो वह सिर्फ 21 हजार रुपये की राशि क्यों देता है? जबकि चुनाव में लोगों ने दिल खोलकर कांग्रेस प्रत्याशी जस्सी पेटवाड़ की तन मन के साथ साथ लाखों रुपए से खुब मदद की थी। जबकि चुनाव में पैसा लेना और देना गैर कानूनी है। लेकिन जब जरुरतमंद लोगों को देने की बात आती है तो सिर्फ 21 हजार रुपए। चुनाव में जिस पत्रकार से खबरें बनवाई उसे ठेंगा दिखाया दिया। जोकि क्षेत्र का ईमानदार व गरीब है। क्या यही समाज सेवा करने के लिए हल्के की जनता ने उन्हें विधायक चुना है। जो जनता की समस्याएं दूर करने और हल्के का विकास करवाने की बातें चुनाव जीतने के बाद हवा हवाई हो गई।

गांव खेड़ी जालब हल्का नारनौंद दीपक पंडित की 6 भैंस अचानक किसी कारण से मर गई थी। वह दीपक किसान 2 बीघे जमीन और पाँच भाइयों में बंटती है तो जमीन ना के बराबर ही है लेकिन पशुओ से ही इनका परिवार चल रहा था तो सभी पशु मरने के बाद पूरा परिवार टूट गया था, इसी बीच फिर समाज को पता चला फिर सामाजिक लोगो ने इस प्रकार मदद की,,,
समाजसेवी Ranbir Singh Lohan ने 1 लाख 25 हजार की कटड़ी वाली भैंस बांध दी और 53000₹ नकद दिए,
5 दिन की ब्याई हुई भैंस पवन बैनीवाल भाई जो नाड़ा गांव से है और इंग्लैंड में रहते हैं उन्होंने 1 लाख 5 हजार की भैंस दी और 21000₹ नकद दिए
हमारे नारनौंद हल्के से पूर्व वित्तमंत्री Captain Abhimanyu ने 31000₹ से मदद की
हमारे नारनौंद हल्के से वर्तमान विधायक Jassi Petwar ने 21000₹ से मदद की
गांव पेटवाड़ से Sonia Doohan जी ने 21000₹ से इस परिवार की मदद की
समाजसेवी Harsh Chhikara ने 21000₹ से मदद की और बहुत से सामाजिक लोगों ने और किसान संगठनों ने या टोल कमेटी द्वारा 11000-11000, 21000-21000 से मदद की गई है …. 23 Nov 2025 तक के आंकड़ों के आधार पर न्यूज तैयार की गई है।
पंडित दीपक शर्मा ने आँखो में आँसू भर कर सभी का धन्यवाद किया और कहा कि आज इस दुख की घड़ी में आप लोगों ने मेरा जो साथ दिया है वह जिंदगी भर नहीं भूल सकता।
आम आदमी पार्टी उम्मीदवार रणबीर सिंह लोहान आपका बहुत बहुत शुभकामनाएं। Ranbir Lohan Narnaund
हालांकि पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की तरफ से भी 31000 की ही आर्थिक मदद की गई है परंतु सोशल मीडिया पर निशाने पर हाल के नारनौंद विधायक जस्सी पेटवाड़ पर ही तंज कसा जा रहा है। लोगों का कहना है कि कप्तान ने नहीं तो कभी चुनाव में लोगों से पैसे लिए और ना ही लोगों की मदद करने से पीछे हटे चाहे वह छोटी सी क्यों ना हो। लेकिन विधायक जस्सी पेटवाड़ ने तो गरीब किसान होने का ढोंग करते हुए सब कुछ बिकने की झूठ बोलकर जनता के वोट ही नहीं बल्कि करोड़ों रुपए चुनाव में ठग लिए। आज हल्के की जनता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही है।
पाली गांव में 6 भैंसों की मौत — फिर वही “21 हजार रुपये”
मामला यहीं नहीं रुका। कुछ ही दिन बाद हल्के के पाली गांव में भी एक बड़ी घटना सामने आई, जहां एक पशुपालक की 6 भैंसें रहस्यमय बीमारी के कारण मर गईं। इस किसान का नुकसान लगभग 10 लाख रुपये के आसपास बताया गया।
घटना की जानकारी मिलते ही विधायक जस्सी पेटवाड़ मौके पर पहुंचे। उन्होंने पशुपालक को ढांढस बंधाया और इस बार भी 21 हजार रुपये का चैक सौंप दिया।
यहां भी दो बातें चर्चा में रहीं —
- नुकसान लगभग 10–12 लाख रुपये का
- सहायता फिर वही — 21,000 रुपये
- समर्थकों ने दावा किया कि “विधायक के लोग” लाखों रुपये की मदद कर रहे हैं
सोशल मीडिया पर लोगों ने सवाल उठाया कि अगर नुकसान लाखों रुपये का हो रहा है, और विधायक हर बार सिर्फ 21 हजार की राशि देते हैं, तो यह “संयोग” है या “रणनीति”?
सोशल मीडिया पर आग — मीम्स, वीडियो और कड़वी प्रतिक्रियाओं की बाढ़
दोनों घटनाओं के बाद फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स (ट्विटर) पर जमकर प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कई स्थानीय चैनलों और इन्फ्लुएंसर्स ने तो इस पर व्यंग्यात्मक पोस्ट भी बनाए।
लोगों की प्रमुख प्रतिक्रियाएं —
- “लाखों का नुकसान, मदद सिर्फ 21 हजार – ये कैसा न्याय?”
- “अगर जनता ज्यादा राशि दे सकती है तो विधायक क्यों नहीं?”
- “हर बार 21 हजार देने की स्कीम क्या चल रही है?”
- “जनप्रतिनिधि की संवेदनशीलता कहां गई?”
कुछ पोस्ट ऐसे भी थे जिनमें लिखा गया —
“स्टोरी चाहे कोई भी हो, पेटवाड़ साहब का रेट फिक्स — 21 हजार!”
राजनीतिक हल्के में बढ़ा दबाव — विपक्ष हमलावर
विपक्ष का दावा है कि यह जनता-विरोधी मानसिकता का उदाहरण है।
बीजेपी और जेजेपी समर्थकों के कई पेजों पर पोस्ट किए गए —
- “लाखों की भैंस मर जाए और विधायक सिर्फ 21 हजार दे, यह किसानों का अपमान है।”
- “पशुपालक की कमाई एक-एक भैंस पर निर्भर होती है।”
- “कांग्रेस सिर्फ दिखावा करती है, जमीन पर राहत नहीं।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नारनौंद जैसे ग्रामीण बहुल क्षेत्र में ऐसी घटनाएं आने वाले चुनावों में असर डाल सकती हैं।
पशुपालन आधारित अर्थव्यवस्था और नुकसान की गंभीरता
नारनौंद, उकलाना और आसपास के क्षेत्र पशुपालन के लिए जाने जाते हैं। यहां भैंस सिर्फ जानवर नहीं, बल्कि आय का प्रमुख स्रोत है।
एक मजबूत, दूधारू भैंस की मार्केट कीमत आमतौर पर —
- 80 हजार रुपये से 2 लाख रुपये तक होती है
- उच्च नस्लों में कीमत 3–5 लाख तक जाती है
इसलिए भैंस की मौत = आर्थिक आपदा
पाली और खेड़ी जालब गांव के दोनों पशुपालकों का नुकसान —
- 8–12 लाख रुपये+
- मरे हुए पशुओं के कारण भविष्य का दूध उत्पादन भी समाप्त
- पशुपालक की कमाई पूरी तरह प्रभावित
ऐसी स्थिति में सहायता राशि का विशेष महत्व होता है, लेकिन लगातार “21 हजार रुपये” का दोहराव ग्रामीणों को खटक रहा है।
क्या सरकारी मुआवजा भी मिलेगा?
पशुपालन विभाग के नियमों के अनुसार —
- बीमारी या आकस्मिक मौत पर सरकारी मुआवजा मिल सकता है
- यह राशि भैंस की नस्ल और उम्र के अनुसार 25,000 से 60,000 रुपये तक होती है
लेकिन यह प्रक्रिया लंबी और दस्तावेज आधारित होती है। ग्रामीणों का कहना है कि —
“सरकारी मुआवजा महीनों बाद मिलता है। ऐसे में नेता से उम्मीद रहती है कि वह तुरंत राहत दे।”
विवाद में बढ़ रहा ‘21 हजार का फॉर्मूला’
लगातार दो घटनाओं में एक ही रकम देने से लोगों ने इसे “21 हजार फॉर्मूला” कहना शुरू कर दिया है।
गांवों में चर्चाएं चल रही हैं —
- “क्या इतने बड़े नेता की सहायता हर बार एक जैसी क्यों रहती है?”
- “क्या विधायक ने सिम्बॉलिक अमाउंट तय कर रखा है?”
- “क्या यह सिर्फ फोटो खिंचवाने वाली राजनीति है?”
कुछ लोगों का कहना है कि विधायक को चाहिए कि —
- नुकसान के अनुसार सहायता करें
- या फिर स्थानीय फंड बनाकर आर्थिक वजह से टूटे पशुपालकों की मदद करें
इससे विधायक की छवि भी बेहतर होती और विवाद भी नहीं बढ़ता।
क्या यह मामला अगले चुनावी मुद्दों में शामिल होगा?
नारनौंद सीट हमेशा से चर्चा में रहती है। यहां चुनावों में जातीय समीकरण, किसान मुद्दे और स्थानीय विवाद बड़ा रोल निभाते हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है —
- ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन की मौत बड़ा भावनात्मक मुद्दा बन जाता है
- सहायता राशि को लेकर सवाल चुनावी माहौल को प्रभावित करते हैं
- सोशल मीडिया ने इन मुद्दों को और तेज बना दिया है
संभव है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में यह मामला प्रमुख मुद्दों में शामिल हो जाए।
ग्रामीणों की मांग — नुकसान के हिसाब से बने ‘राहत नीति’
कई ग्रामीणों ने इस घटना के बाद सुझाव दिया है कि —
- नुकसान-आधारित राहत मॉडल बने
- विधायक/सरकार को तत्काल राहत के लिए फंड तैयार रखना चाहिए
- भैंस/गाय जैसी आर्थिक संपत्ति पर अलग मुआवजा नीति बनाई जाए
- स्थानीय स्तर पर सहायता राशि बढ़ाई जाए
विवाद अभी खत्म नहीं, और चर्चा बढ़ने की संभावना
खेड़ी जालब और पाली गांव की घटनाओं ने नारनौंद हल्के में बड़ा सामाजिक और राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है।
- एक तरफ विपक्ष सरकार और विधायक पर हमला कर रहा है
- दूसरी तरफ समर्थक बहस को राजनीतिक रंग बता रहे हैं
- तीसरी ओर सोशल मीडिया इस मुद्दे को लगातार हवा दे रहा है
अभी तक जस्सी पेटवाड़ की ओर से कोई बड़ा बयान नहीं आया है, इसलिए विवाद और लंबा खिंच सकता है। आने वाले दिनों में यदि कोई नई राजनीतिक प्रतिक्रिया, सरकारी घोषणा या ग्रामीणों की ओर से विरोध सामने आता है, तो यह मुद्दा और ज्यादा सुर्खियों में रहेगा।
जल्द ही हरियाणा न्यूज़ अब तक पर विधायक जस्सी पेटवाड़ रिपोर्टकार्ड एक साल का भी प्रकाशित किया जाएगा।
विधायक जस्सी पेटवाड़ की प्रतिक्रिया क्या?
फिलहाल विधायक की ओर से कोई आधिकारिक प्रेस बयान सामने नहीं आया है। लेकिन उनके करीबी समर्थकों का कहना है कि —
- “21 हजार रुपये विधायक की निजी सहायता है, सरकारी मदद इसके अलावा आएगी।”
- “गांव के लोग आगे आकर बड़ी सहायता करते हैं, यह अच्छी बात है।”
- “सोशल मीडिया पर मुद्दे को राजनीति से प्रेरित बनाकर उछाला जा रहा है।”
हालांकि विरोधी इस बात को नहीं मान रहे। उनका कहना है कि —
“नुकसान लाखों का हो और मदद सिर्फ 21 हजार की हो, यह असंगत और दिखावटी सहानुभूति है।”
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